Tuesday, 25 June 2013

Shiva Lingam - The Universal Almighty And a Universal Truth







कुछ अज्ञानी लोगो ने शिवलिंग को जननांग समझ कर पता नही क्या क्या गलत अवधारनाये फैला दे है सत्य को समझे

शिवलिंग (shiva lingam) :
वातावरण सहित घूमती धरती या सारे अनन्त ब्रह्माण्ड (ब्रह्माण्ड गतिमान है) का अक्स/धुरी (axis) ही लिंग है।
The whole universe rotates through a shaft called shiva lingam.
हम जानते है की सभी भाषाओँ में एक ही शब्द के कई अर्थ निकलते है
जैसे: सूत्र के - डोरी/धागा,गणितीय सूत्र, कोई भाष्य, लेखन को भी सूत्र कहा जाता है जैसे नासदीय सूत्र, ब्रह्म सूत्र आदि |
अर्थ :- सम्पति, मतलब (मीनिंग),
उसी प्रकार यहाँ लिंग शब्द से अभिप्राय चिह्न, निशानी, गुण, व्यवहार या प्रतीक है।

लिंग संस्कृत का शब्द है जिसके निम्न अर्थ है :

त आकाशे न विधन्ते -वै०। अ ० २ । आ ० १ । सू ० ५
रूप ,रस ,गंध और स्पर्श :- ये लक्षण आकाश में नही है । किन्तु शब्द ही आकाश का गुण है ।

निष्क्रमणम् प्रवेशनमित्याकशस्य लिंगम् -वै०। अ ० २ । आ ० १ । सू ० २ ०
जिसमे प्रवेश करना व् निकलना होता है वह आकाश का लिंग है । अर्थात ये आकाश के गुण है ।

अपरस्मिन्नपरं युगपच्चिरं क्षिप्रमिति काललिङ्गानि । -वै०। अ ० २ । आ ० २ । सू ० ६
जिसमे अपर, पर, (युगपत) एक वर , (चिरम) विलम्ब , क्षिप्रम शीघ्र इत्यादि प्रयोग होते है , इसको काल कहते है , अर्थात ये काल के लिंग है ।

इत इदमिति यतस्यद्दिश्यं लिंगम । -वै०। अ ० २ । आ ० २ । सू ० १ ०
जिसमे पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण , ऊपर व् निचे का व्यवहार होता है उसी को दिशा कहते है अर्थात ये सभी दिशा के लिंग है ।

इच्छाद्वेषप्रयत्नसुखदुःखज्ञानान्यात्मनो लिंगमिति -न्याय० अ ० १ । आ ० १ । सू ० १ ०
जिसमे (इच्छा) राग , (द्वेष) वैर, (प्रयत्न) पुरुषार्थ , सुख, दुःख, (ज्ञान) जानना आदि गुण हो , वः जीवात्मा है ये सभी जीवात्मा के लिंग अर्थात कर्म व् गुण है ।

-सत्यार्थ प्रकाश, स्वामी दयानंद सरस्वती

शून्य, आकाश, अनन्त, ब्रह्माण्ड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने से इसे लिंग कहा गया है। स्कन्दपुराण में कहा है कि आकाश स्वयं लिंग है। धरती उसका पीठ या आधार है और सब अनन्त शून्य से पैदा हो उसी में लय होने के कारण इसे लिंग कहा है तथा कई अन्य नामो से भी संबोधित किया गया है जैसे : प्रकाश स्तंभ/लिंग, अग्नि स्तंभ/लिंग, उर्जा स्तंभ/लिंग, ब्रह्माण्डीय स्तंभ/लिंग (cosmic pillar/lingam)
ब्रह्माण्ड में दो ही चीजे है : ऊर्जा और प्रदार्थ | हमारा शरीर प्रदार्थ से निर्मित है और आत्मा ऊर्जा है|
इसी प्रकार शिव पदार्थ और शक्ति ऊर्जा का प्रतीक बन कर शिवलिंग कहलाते है |
ब्रह्मांड में उपस्थित समस्त ठोस तथा उर्जा शिवलिंग में निहित है. वास्तव में शिवलिंग हमारे ब्रह्मांड की आकृति है. (The universe is a sign of Shiva Lingam.)
शिवलिंग भगवान शिव और देवी शक्ति (पार्वती) का आदि-आनादी एकल रूप है तथा पुरुष और प्रकृति की समानता का प्रतिक भी अर्थात इस संसार में न केवल पुरुष का और न केवल प्रकृति (स्त्री) का वर्चस्व है अर्थात दोनों सामान है |
अब जरा आईसटीन का सूत्र देखिये जिस के आधार पर परमाणु बम बनाया गया, परमाणु के अन्दर छिपी अनंत ऊर्जा की एक झलक दिखाई जो कितनी विध्वंसक थी सब जानते है |
e / c = m c {e=mc^2}

इसके अनुसार पदार्थ को पूर्णतयः ऊर्जा में बदला जा सकता है अर्थात दो नही एक ही है पर वो दो हो कर स्रष्टि
का निर्माण करता है . हमारे ऋषियो ने ये रहस्य हजारो साल पहले ही ख़ोज लिया था.

हमारे संतों/ऋषियों ने जो हमें वेदों और उपनिषदों का ज्ञान लिखित रूप में प्रदान किया है उन्होंने कभी यह दावा नहीं किया कि यह उनका काम है. वे हर काम के अंत में स्वीकार किया कि वे हमें बता रहे हैं जो उन्हें अपने पूर्वजों द्वारा कहा गया है. यह सार्वभौमिक ज्ञान लगभग १३.७ खरब वर्ष पुराना हमें तमिल और संस्कृत जैसी महान भाषाओँ में उपलब्ध होता है . यह किसी अन्य भाषा में पूर्णतया (exact) अनुवाद नही किया जा सकता । कम से कम अंग्रेजी जैसी कमजोर भाषा में तो बिलकुल नही । जैसे एक छोटा सा उदहारण देता हूँ : आज गूगल ट्रांसलेटर http://translate.google.com/ में लगभग सभी भाषाओँ का समावेश है किन्तु संस्कृत का नही । क्योकि संस्कृत का व्याकरण विशाल तथा दुर्लभ है ।
आप कहेंगे की संस्कृत इतनी इम्पोर्टेन्ट नही इसलिए नही होगी , यदि इम्पोर्टेन्ट नही तो नासा संस्कृत क्यों अपनाना चाहती है । और अपने नवयुवकों को संस्कृत सिखने पर जोर क्यू दे रही है ?
यहाँ देखें : http://hindi.ibtl.in/news/international/1978/article.ibtl
यह भी देखें :
http://vaidikdharma.wordpress.com/2013/01/16/संस्कृतsanskrit-को-मृत-भाषा-कहने/

श्री वार्ताक जी (वेद विज्ञान मंडल,पूणे) ने अपने लेख Shiva Lingam – A Symbol of Science में लिखा है की जब कालांतर में ज्ञान के स्तर में गिरावट आई तब पाश्चात्य वैज्ञानिको ने वेदों / उपनिषदों तथा पुराणो आदि को समझने में मुर्खता की क्योकि उनकी बुद्धिमत्ता वेदों में निहित प्रकाश से साक्षात्कार करने योग्य नही थी ।

ऐसा उदहारण हम हमारे दैनिक जीवन में भी देखते है जैसे परीक्षा के दिनों में अध्ययन करते समय जब कोई
टॉपिक हमें समझ न आये तो हम कह दिया करते है की ये टॉपिक तो बेकार है !!
जब की असल में वह टॉपिक बेकार नही अपितु उस टॉपिक में निहित ज्ञान का प्रकाश हमारी बुद्धिमत्ता से अधिक है ।

इसे इस तरह भी समझ सकते है की 12 वोल्ट धारण कर सकने वाले विधुत बल्ब में अगर घरों में आने वाले वोल्ट (240) प्रवाहित कर दिया जाये तो उस बल्ब की क्या दुर्गति होगी ? उसका फिलामेंट तत्क्षण अविलम्ब उड़ जायेगा ।

यही उन बेचारे वैज्ञानिकों के साथ हुआ । मैक्स मुलर जैसो ने तो वेदों को काल्पनिक कहा ।

हम अपने देनिक जीवन में भी देख सकते है की जब भी किसी स्थान पर अकस्मात् उर्जा का उत्सर्जन होता है तो उर्जा का फैलाव अपने मूल स्थान के चारों ओर एक वृताकार पथ में तथा उपर व निचे की ओर अग्रसर होता है अर्थात दशोदिशाओं (आठों दिशों की प्रत्येक डिग्री (360 डिग्री)+ऊपर व निचे ) होता है, फलस्वरूप एक क्षणिक शिवलिंग आकृति की प्राप्ति होती है जैसे बम विस्फोट से प्राप्त उर्जा का प्रतिरूप , शांत जल में कंकर फेंकने पर प्राप्त तरंग (उर्जा) का प्रतिरूप आदि ।

स्रष्टि के आरम्भ में महाविस्फोट के पश्चात् उर्जा का प्रवाह वृत्ताकार पथ में तथा ऊपर व निचे की ओर हुआ फलस्वरूप एक महाशिवलिंग का प्राकट्य हुआ जैसा की आप उपरोक्त चित्र में देख सकते है | जिसका वर्णन हमें लिंगपुराण, शिवमहापुराण, स्कन्द पुराण आदि में मिलता है की आरम्भ में निर्मित शिवलिंग इतना विशाल (अनंत) तथा की देवता आदि मिल कर भी उस लिंग के आदि और अंत का छोर या शास्वत अंत न पा सके ।
पुराणो में कहा गया है की प्रत्येक महायुग के पश्चात समस्त संसार इसी शिवलिंग में समाहित (लय) होता है तथा इसी से पुनः सृजन होता है ।

[उसी आदि शक्ति के आदि स्वरुप (शिवलिंग ) से इस समस्त संसार की उत्पति हुई तथा उसका यह गोलाकार/सर्पिलाकार स्वरुप प्रत्यक्ष अथवा प्ररोक्ष तथा प्राकृतिक अथवा कृत्रिम रूप से हमारे चारों और स्थित है | निम्न फोटो को देखें :
1. हमारी आकाश गंगा ।
2. हमारी पडोसी अन्य आकाश गंगाएँ (पांच -सात -दस नही, अनंत है) ।
3. ग्रहों, उल्काओं आदि की गति (पथ)।
4.ब्लैक होल की रचना ।
5. संपूर्ण पृथ्वी पर पाए गये सर्पिलाकार चिन्ह । ये अभी तक रहस्य बने हए है, हजारों की संख्या में है, जिनमे से अधिकतर पिरामिडों से भी पुराने है ।
6. समुद्री तूफान ।
7. मानव डीएनए।
8. मानव कुण्डलिनी (सर्पिलाकार /गोलाकार/ कुंडल
के समान ) शक्ति का प्रतिरूप । 9. जल धारा ।

10. जीवाश्म । 11. परमाणु की संरचना ।
12. शंख की संरचना ।
13. समुद्री जिव की गति ।
14. मकड़ी का जाला ।
15. वायु तूफान । 16. प्रकृति ।
17. घोंघा । 18. बम विस्फोट से निकली
उर्जा की प्रतिरूप ।
19. ब्रह्माण्ड में होने वाले देनिक स्व विष्फोट ।
20. सरोवर में गिरी जल की बूंद का प्रतिरूप ।
21. लट । 22. पुष्प । 23. डीएनए की
न्युक्लियोटाइड संरचना ।
24. शिवलिंग

इस प्रकार की वृताकार संरचनाओं का सम्बन्ध ॐ से है । इसी लेख में आप आगे देखेंगे |
Explanation in English
http://www.youtube.com/watch?feature
player_embedded&v=pTLAZQxfOvE
अधिक जानकारी के लिए देखें :
https://sites.google.com/site/vvmpune/essay-of-dr-p-v-vartak/shiva-lingam

साभार: AwakenTheWorldFile:

दोस्तों उपरोक्त वर्णन पूर्णतया सत्य है इसके अतिरिक्त आप शिवलिंग की कहीं और इसके विपरीत (गलत सलत ) व्याख्या देखते है तो वह पूर्णतया खोटी है, षड्यंत्रकारियों के षड्यंत्र, मूर्खों की भ्रमित बुद्धि के प्रलाप तथापि चंद सेंकडों वर्ष पूर्व लोगो द्वारा चलाई गई मजहबी दुकानों की उन्नति हेतु सनातन धर्म पर कीचड़ उछालने का नाकाम प्रयास मात्र है |
खैर ये तो देवों और असुरों का पुराना प्रेम है |
ॐ (ओ३म्)
ॐ ब्रह्मांड की अनाहत ध्वनि है। इसे अनहद भी कहते हैं। संपूर्ण ब्रह्मांड में यह अनवरत जारी है।
इस प्रणवाक्षर (प्रणव+अक्षर) भी कहते है प्रणव का अर्थ होता है तेज गूंजने वाला अर्थात जिसने शुन्य में तेज गूंज कर ब्रह्माण्ड की रचना की |
वैसे तो इसका महात्म्य वेदों, उपनिषदों, पुराणों तथा योग दर्शन में मिलता है परन्तु खासकर माण्डुक्य उपनिषद में इसी प्रणव शब्द का बारीकी से समझाया गया है |
माण्डुक्य उपनिषद के अनुसार यह ओ३म् शब्द तीन अक्षरों से मिलकर बना है- अ, उ, म. प्रत्येक अक्षर ईश्वर के अलग अलग नामों को अपने में समेटे हुए है. जैसे “अ” से व्यापक, सर्वदेशीय, और उपासना करने योग्य है. “उ” से बुद्धिमान, सूक्ष्म, सब अच्छाइयों का मूल, और नियम करने वाला है. “म” से अनंत, अमर, ज्ञानवान, और पालन करने वाला है. तथा यह ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतिक भी है |
आसान भाषा में कहा जाये तो निराकार इश्वर को एक शब्द में व्यक्त किया जाये तो वह शब्द ॐ ही है |

तपस्वी और योगी जब ध्यान की गहरी अवस्था में उतरने लगते है तो यह नाद (ध्वनी) हमारे भीतर तथापि बाहर कम्पित होती स्पष्ट प्रतीत होने लगती है | साधारण मनुष्य उस ध्वनि को सुन नहीं सकता, लेकिन जो भी ओम का उच्चारण करता रहता है उसके आसपास सकारात्मक ऊर्जा का विकास होने लगता है। फिर भी उस ध्वनि को सुनने के लिए तो पूर्णत: मौन और ध्यान में होना जरूरी है |

हाल ही में हुए प्रयोगों के निष्कर्षों के आधार पर सूर्य से आने वाली रश्मियों में अ उ म की ध्वनी होती है इसकी पुष्टि भी हो चुकी है ।
ॐ को केवल सनातनियों के ईश्वरत्व का प्रतिक मानना उचित नही । जिस प्रकार सूर्य, वर्षा, जल तथा प्रकृति आदि किसी से भेदभाव नही करती, उसी प्रकार ॐ, वेद तथा शिवलिंग आदि भी समस्त मानव जाती के कल्याण हेतु है | यदि कोई इन्हें केवल सनातनियों के ईश्वरत्व का प्रतिक मानें तो इस हिसाब से सूर्य तथा समस्त ब्रह्माण्ड भी केवल हिन्दुओं का ही हुआ ना ? क्योकि सूर्य व ब्रहमांड सदेव ॐ का उद्घोष करते है..


Om Namah Shivaya :)